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“रोबोटिक आर्म नी रिसर्फेसिंग ने घुटनों की समस्याओं के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव लाया है” – आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. गगनदीप गुप्ता

कहते हैं कि लंबे समय तक बैठने जैसी निष्क्रिय आदतें घुटनों के गठिया में वृद्धि कर रही हैं

September 6, 2025
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“रोबोटिक आर्म नी रिसर्फेसिंग ने घुटनों की समस्याओं के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव लाया है” – आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. गगनदीप गुप्ता

मोहाली: आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. गगनदीप गुप्ता ने मरीजों के लिए नि:शुल्क आर्थोपेडिक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया। इस दौरान डॉ. गुप्ता ने उन मरीजों की जांच की जिन्हें जोड़ो में दर्द, गतिशीलता में कमी और घुटनों की समस्याओं – विशेष रूप से घुटनों के गठिया – के कारण दैनिक गतिविधियों में कठिनाई हो रही थी। यह शिविर ट्राइसिटी के एमकेयर सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में आयोजित किया गया। शिविर के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए डॉ. गगनदीप गुप्ता ने कहा, “लंबे समय तक बैठने की आदत और मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से घुटनों के गठिया के मामले बढ़ रहे हैं। खराब हो चुके घुटने व्यक्ति की गतिविधियों को सीमित कर देते हैं, जिससे मोटापा, ब्लड शुगर में गड़बड़ी और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। इसका सीधा असर जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है।” उन्होंने आगे कहा, “इस शिविर का उद्देश्य मरीजों को घुटनों की समस्याओं के इलाज में उपलब्ध नवीनतम तकनीकों के बारे में जागरूक करना था। इनमें से एक तकनीक है रोबोटिक आर्म नी रिसर्फेसिंग, जिसने घुटनों की समस्याओं के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव किया है।” डॉ. गगनदीप ने बताया, “रोबोटिक आर्म नी रिसर्फेसिंग एक उन्नत तकनीक है, जो छोटे चीरे, इम्प्लांट की सटीक स्थिति, कम अस्पताल में रहने का समय और जल्दी रिकवरी के साथ स्वतंत्र जीवनशैली प्रदान करती है।”

नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर का उद्देश्य घुटनों की रिसर्फेसिंग सर्जरी से जुड़े भ्रमों को दूर करना और हकीकत से रूबरू कराना था। “कई मरीज घुटनों के दर्द के इलाज को लेकर भ्रांतियों, जोखिम और रिकवरी से जुड़े डर के कारण इलाज में देरी कर देते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। समय पर परामर्श से स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है और लंबे समय के परिणाम बेहतर हो सकते हैं,” डॉ. गगनदीप ने कहा। शिविर में लोगों को 3D प्रिंटेड नी डिजाइन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के बारे में भी जानकारी दी गई, जो प्रत्येक व्यक्ति की हड्डियों की संरचना के अनुसार तैयार किए जाते हैं और परिणाम व आराम को बेहतर बनाते हैं।

डॉ. गगनदीप ने कहा, “हमारा मिशन है कि जोड़ सर्जरी को लेकर मौजूद मिथकों को तोड़ा जाए और लोगों को बताया जाए कि आधुनिक तकनीक जैसे रोबोटिक्स और 3D प्रिंटिंग ने इन प्रक्रियाओं को सुरक्षित, तेज़ और अत्यधिक प्रभावी बना दिया है।” शिविर की एक विशेषता यह रही कि जिन मरीजों का घुटनों की रिसर्फेसिंग डॉ. गगनदीप गुप्ता ने किया था, उन्होंने अपने अनुभव साझा किए। करनाल की सरोज (बदला हुआ नाम) ने बताया कि सर्जरी से पहले उनका वजन लगभग 105 किलो था और वह ऑपरेशन से डर रही थीं। लेकिन अब, सर्जरी के 3 महीने बाद, वह रोज़ 1 घंटे पैदल चल पाती हैं और सभी दैनिक कार्य बिना दर्द के कर रही हैं।

पटियाला के चरन सिंह (बदला हुआ नाम) ने साझा किया कि उन्होंने 2021 में 83 वर्ष की आयु में डॉ. गगनदीप से घुटनों की रिसर्फेसिंग करवाई थी। और अब सर्जरी के 4 साल बाद भी वह कार चला लेते हैं, सीढ़ियां चढ़-उतर लेते हैं और अपने सभी कार्य आराम से कर पाते हैं। नरवाना की देविंदर कौर ने बताया कि घुटनों के गठिया के कारण उनके घुटने टेढ़े हो गए थे और वह लंगड़ाकर चलती थीं। लंबे समय तक दर्द और लंगड़ाहट को नजरअंदाज करने से रीढ़ की हड्डी में भी समस्या हो गई और उन्हें स्पाइन सर्जरी की सलाह दी गई थी। लेकिन डॉ. गगनदीप द्वारा घुटनों की रिसर्फेसिंग कराने के बाद उनकी चाल में सुधार हुआ और अब सर्जरी के 4 साल बाद भी वह सहज हैं और रीढ़ की समस्या भी नहीं रही।

डॉ. गगनदीप ने बताया कि वजन, उम्र और अन्य कारकों को लेकर कई तरह के भ्रम मरीजों के मन में रहते हैं कि उन्हें घुटनों की रिसर्फेसिंग करानी चाहिए या नहीं। ऑनलाइन गूगल सर्च और आस-पड़ोस की सलाह इस भ्रम को और बढ़ा देती है।

शिविर में यह भी जोर देकर कहा गया कि जिन मरीजों को घुटनों के गठिया के कारण दैनिक जीवन की गतिविधियों में कठिनाई हो रही है, उन्हें किसी आर्थोपेडिक विशेषज्ञ से परामर्श कर अपनी समस्या के अनुसार सही प्रबंधन योजना बनवानी चाहिए।

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