चण्डीगढ़ : हरियाणा को पंजाब से अलग हुए 58 साल हो गए हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इस क्षेत्र को अभी तक पूर्ण स्वायत्त राज्य का दर्जा नहीं मिल सका है क्योंकि इसके पास अपनी अलग राजधानी और अलग उच्च न्यायालय नहीं है। इसलिए इस क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास एवं समृद्ध प्राचीन संस्कृति के आधार पर विशेष पहचान बनाने का सुनहरा अवसर व्यर्थ जा रहा है। ये बात आज चण्डीगढ़ प्रेस क्लब में हरियाणा की नई राजधानी और अलग उच्च न्यायालय के मुद्दे पर हरियाणा बनाओ अभियान द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में भारत सरकार के पूर्व उप सचिव एमएस चोपड़ा ने कही। उन्होंने कहा कि भारत में हरियाणा की पवित्र भूमि अपनी प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, आध्यात्मिक समृद्धि और सामाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखती है। लेकिन आज का हरियाणा अपनी राजधानी से वंचित है। आज हरियाणा के लोगों के पास अपनी विरासत को संरक्षित करने और बढ़ावा देने तथा आधुनिक आर्थिक प्रगति और उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए कोई केंद्रीय स्थान नहीं है। हरियाणा अस्तित्व में तो आया लेकिन उसकी समृद्ध पहचान विकसित नहीं हो सकी। इसने अभी तक विशेष पहचान एवं पूर्णता प्राप्त नहीं की है। उचित स्थान पर आधुनिक राजधानी के निर्माण से राज्य के अविकसित क्षेत्रों के विकास को नई गति मिलेगी और यह राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का निर्णय लेना होगा।
हरियाणा के पूर्व मुख्य सचिव एससी चौधरी ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि हरियाणा के गौरवशाली संस्कृति एवं समग्र विकास हेतु अलग राजधानी होना अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि अलग राजधानी व उच्च न्यायालय होने से हरियाणा के लोगों को प्रशासनिक और न्यायिक सेवाओं का लाभ उठाने में बड़ी सुविधा मिलेगी। सात जिलों से 22 जिले बनाने का अप्रत्यक्ष औचित्य लोगों को प्रशासनिक और न्यायिक सेवाएं प्रदान करना है। लेकिन राज्य के एक कोने में स्थित राजधानी में दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोगों को प्रशासनिक कार्यालयों और उच्च न्यायालय तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है और हजारों रुपये का टोल चुकाना पड़ता है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में लाखों मामले लंबित होने के कारण हरियाणा के लोगों को न्याय के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है और यह महंगा भी पड़ता है।
राधेश्याम शर्मा, पूर्व उपकुलपति ने बताया कि हरियाणा में सबसे गंभीर समस्या बेरोजगारी है। निराश युवा नशे और अपराध का शिकार हो रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं या अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे देशों की ओर पलायन कर रहे हैं। केवल सरकारी रिक्तियों पर भर्ती से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए रोजगार के नए अवसर तलाशने और पैदा करने होंगे। जिसमें राज्य की नई राजधानी का निर्माण इस समस्या के समाधान में अहम भूमिका निभाएगा। गुरुग्राम की तरह, विदेशी और निजी कंपनियों द्वारा अरबों-खरबों रुपये के संभावित निवेश से लाखों विभिन्न प्रकार की नौकरियां पैदा होंगी।
हरियाणवी लोकगायक पद्मश्री महावीर गुड्डु ने बताया कि हरियाणा प्रदेश की विशिष्ट पहचान, सम्पूर्णता, प्रगति एवं प्रतिष्ठा के लिए दूसरी राजधानी एवं पृथक उच्च न्यायालय की स्थापना हेतु संघर्ष करन होगा। राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक शक्तियों का केन्द्रीकरण नितांत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि नार्थ ज़ोन कल्चरल सेंटर (एनजेडसीसी) में एक भी सदस्य का हरियाणा से नहीं होना प्रदेश के साथ हो रहे अन्याय का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
हरियाणा बनाओ अभियान के संयोजक रणधीर सिंह बधरान, जो पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व चेयरमैन, बार काउंसिल पंजाब एवं हरियाणा हैं, ने बताया कि वकील हरियाणा और पंजाब की अलग बार की भी मांग कर रहे हैं और अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए हरियाणा के वार्षिक बजट में बड़े प्रावधान करने और हरियाणा की अलग बार काउंसिल के माध्यम से अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम के तहत अधिवक्ताओं को सेवानिवृत्ति लाभ लागू करने की भी मांग कर रहे हैं। चूँकि कई अन्य राज्यों ने पहले ही अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए राज्य सरकारों के वार्षिक बजट में बजटीय प्रावधान कर दिए हैं। अधिवक्ता अधिनियम के तहत अलग बार काउंसिल के निर्माण के लिए हरियाणा में अलग उच्च न्यायालय का निर्माण जरूरी है।रिकॉर्ड के अनुसार हरियाणा के 14,25,047 से अधिक मामले हरियाणा के जिलों और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं और 450000 से अधिक मामले उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं और लाखों मामले अन्य आयोगों, न्यायाधिकरणों और अन्य प्राधिकरणों के समक्ष लंबित हैं। अनुमान है कि हरियाणा के 45 लाख से अधिक लोग मुकदमेबाजी में शामिल हैं और अधिकांश वादकारी मामलों के निपटारे में देरी के कारण प्रभावित होते हैं। त्वरित निर्णय के मुद्दे हरियाणा के वादकारियों और अधिवक्ताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिए हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों को अलग-अलग उच्च न्यायालय की आवश्यकता है।
कमांडेंट ईश्वर सिंह दूहन (सेवानिवृत्त), डॉ. आरआर मलिक, पूर्व प्रिंसिपल, जीएमएन कॉलेज, अम्बाला, सुनील कटियाल, पूर्व आयुक्त, राइट टू सर्विस आयोग, हरियाणा, बिमला चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता, रंधीर सिंह सरोहा, सह-संयोजक, हरियाणा बनाओ अभियान, आरआर मलिक, प्रिंसिपल (सेवानिवृत), एडवोकेट ललित बराड़ा, यादविंदर सिंह, रवि कांत सैन, एडवोकेट, रिया मलिक, दीपल तमांग, अनुकृति, अधिवक्ता, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय व अन्य सामाजिक कार्यकर्ता संजीव नेहरा, सादिक चौहान, अग्निवेश नारा, लाभ सिंह, अशोक दादूपुर, संजीव कुमार, ईश्वर गोयत, पूजा आदि भी इस अवसर पर उपस्थित रहे व अपने विचार रखे।