फतेहाबाद: फतेहाबाद जिले में बिश्नोई समाज के बड़े संत स्वामी राजेंद्रानंद महाराज के निधन का 16 दिन तक शोक मनाया जाएगा। गांव बड़ोपल की श्रीकृष्ण गोशाला गऊधाम में 16 दिन तक श्रद्धांजलि सभा चलेगी। रोजाना श्रद्धालु समाज और गो संरक्षण में दिए गए उनके योगदान को याद करेंगे। वहीं, जिलेभर की गोशालाओं में आज सोमवार को उनकी याद में श्रद्धांजलि सभाएं होंगी। जिनमें एकत्रित होकर उनके अनुयायी व समर्थक उन्हें पुष्प अर्पित करेंगे। गौरतलब है कि 15 अगस्त को सिरसा जिले के डबवाली शहर में एक यात्रा में शामिल होने गए स्वामी राजेंद्रानंद महाराज का हृदय गति रुकने से निधन हो गया था।
गोशालाओं के लिए दान एकत्रित करवाते थे संत राजेंद्रानंद
गोशाला संचालक अशोक भुक्कर, गो प्रेमी संजय बांगड़वा व अन्य ने बताया कि संत राजेंद्रानंद महाराज ने संपूर्ण जीवन गो सेवा और गो रक्षा को समर्पित किया हुआ था। उन्होंने देशभर की गोशालाओं में करोड़ों रुपए का दान दिलवाया। घायल, बीमार और बेसहारा गायों की सेवा के लिए विशेष चिकित्सा और आश्रय की व्यवस्था करवाई। सैकड़ों गोशालाओं की स्थापना और विस्तार में सहयोग दिया।
यूपी के बिजनौर जिले में हुआ जन्म
संत राजेंद्रानंद महाराज का जन्म 6 नवंबर 1973 को UP के बिजनौर जिले में हुआ था। वह मात्र 18 साल की उम्र से कथाएं करने लगे थे। करीब 67 साल की उम्र तक वह कथा करते रहे। उन्होंने करीब 40 साल तक कथाएं की।
1500 से अधिक कथाएं की
संजय बांगड़वा बताते हैं कि गो रक्षा के संदेश के लिए संत राजेंद्रानंद महाराज ने 1500 से अधिक कथाएं की। इन कथाओं में लाखों लोगों को गो सेवा के प्रति प्रेरित किया। संत राजेंद्रानंद महाराज मानते थे कि गो सेवा केवल धर्म नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की रक्षा है। उन्होंने गो कथा, जम्भवाणी हरिकथा, शिव महापुराण, श्रीमद्भागवत कथा, राम कथा के जरिए धर्म का प्रचार किया।
कथा के लिए नहीं लेते थे कोई रुपया
श्रद्धालुओं के अनुसार, संत राजेंद्रानंद महाराज कथाओं के लिए एक भी रुपया पारिश्रमिक नहीं लेते थे। जब भी किसी गोशाला में दान राशि एकत्रित करवाने के उद्देश्य से गो कथा होती थी, तो वह स्वयं सबसे पहले अपनी तरफ से दान देते थे।
हिसार, सिरसा व फतेहाबाद की अधिकांश गोशालाओं में की कथा
यही कारण है कि फतेहाबाद, सिरसा व हिसार जिलों में हर गोशाला प्रबंधन कमेटी उनसे कथा करवाने का आग्रह करती थी। साल भर पहले ही उनकी कथाओं के कार्यक्रम तय हो जाते थे। उन्होंने इन तीनों जिलों की अधिकांश गोशालाओं में गो कथा की हुई है। इस कारण गो रक्षकों व धर्मप्रेमी लोगों का उनके प्रति विशेष आदर रहा है।